200 से अधिक हैं दुकान, बाहर से आते हैं कारीगर।
शहर अब तिल की सोंधी खुशबू से महक उठा है. जगह-जगह पर कारीगर तिल कूट रहे हैं. शहर की बात की जाए तो 200 से अधिक तिलकुट के छोटे-छोटे दुकान सड़क किनारे दिखेंगे. जहां हजारीबाग ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों से कारीगर पहुंचकर तिलकुट बनाने में लगे हुए हैं. अगर बात की जाए तिलकुट के व्यापार की तो महज तीन माह में दो करोड़ रुपए का तिलकुट का व्यापार हजारीबाग में हो जाता है.
दूर दराज से पहुंचते हैं कारीगर।
तिलकुट जो मूल रूप से बिहार के गयाजी का प्रसिद्ध है, अब हजारीबाग का तिलकुट भी अपनी मांग दूर तलक तक बना रहा है. यहां का बना हुआ तिलकुट झारखंड के कई जिले के अलावा बंगाल, बिहार और मध्य प्रदेश तक पहुंच रहा है. कुछ व्यापारी हैं जो दिल्ली तक तिलकुट का व्यापार कर रहे हैं. नवंबर महीने से ही हजारीबाग में तिलकुट का व्यापार शुरू हो जाता है. दूर दराज से कारीगर तिल कूटने के लिए पहुंच जाते हैं. जो फरवरी अंत तक यहां रहते हैं.
मकर संक्रांति पर बढ़ जाती है उत्पादन की रफ्तार।
इंद्रपुरी स्थित साव जी बेकरी के संचालक मानकी साव बताते हैं ठंड आगमन के साथ ही तिलकुट की डिमांड बढ़ जाती है. फरवरी महीने तक इसकी मांग खूब रहती है. मकर संक्रांति में सबसे अधिक तिलकुट की बिक्री होती है. उन्होंने बताया कि फिलहाल दुकान में रोजाना करीब 60 किलो गुड़ और 40 किलो चीनी वाले तिलकुट तैयार किए जा रहे हैं. जैसे-जैसे मकर संक्रांति नजदीक आएगी, उत्पादन की रफ्तार बढ़ती जाएगी. तिलकुट बनाने के लिए चतरा से कारीगर पहुंचते हैं. तिलकुट बनाने की प्रक्रिया बेहद बारीक और मेहनत से भरी होती है.







