कोलकाता । सारे एग्जिट पोल के विपरीत तृणमूल कांग्रेस ने पश्चिम
बंगाल की 42 लोकसभा सीटों में से 29 पर जीत दर्ज कर ली। इससे भारतीय जनता
पार्टी (भाजपा) के 35 सीट हासिल करने के लक्ष्य को झटका लगा। भाजपा केवल 12
सीट ही जीत पाई। एक सीट कांग्रेस की झोली में गई है।
भ्रष्टाचार के
आरोपों और आंतरिक संघर्षों सहित कई चुनौतियों का सामना करने के बावजूद
तृणमूल कांग्रेस मजबूती से खड़ी रही। यहां तक कि राज्य में इंडी गठबंधन से
अलग होने के बाद भी। आखिर इसकी क्या वजह है? राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना
है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा ने नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के
कार्यान्वयन और हिंदू ध्रुवीकरण का लाभ उठाते हुए 35 लोकसभा सीट हासिल करने
का एक महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित किया था, जो पूरा नहीं हो पाया।
राजनीतिक
विश्लेषक मैदुल इस्लाम ने कहा, "आंतरिक विभाजन, संगठनात्मक कमजोरियां और
वाम-कांग्रेस गठबंधन के प्रभाव ने भाजपा के लिए तृणमूल विरोधी वोट हासिल
करना कठिन बना दिया।" भाजपा की सीट संख्या में छह की कमी आई है। इतना ही
नहीं भाजपा का वोट प्रतिशत 40 से तीन फीसदी घटकर 37 रह गया है। इसके
विपरीत, तृणमूल का वोट प्रतिशत बढ़कर 47 प्रतिशत हो गया जो 2019 में 43
प्रतिशत था।
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के
नेतृत्व वाला वाम मोर्चा 2019 में कोई भी सीट जीतने में विफल रहा था। इस
साल भी उसे एक भी सीट नहीं मिली। जनवरी में तृणमूल और कांग्रेस के बीच सीट
बंटवारे की बात टूटने से ममता बनर्जी की पार्टी को फायदा हुआ। इससे
त्रिकोणीय चुनावी मुकाबले के लिए मंच तैयार हुआ और तृणमूल कांग्रेस को
रणनीतिक लाभ मिला है।