रांची । अखंड सौभाग्य का प्रतीक वट सावित्री व्रत छह जून को है। इस
दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए व्रत
रखती हैं। इस व्रत को रखने से परिवार के लोगों को सौभाग्य आशीर्वाद मिलता
है और वैवाहिक जीवन में खुशियां आती है। बहुत से लोग ये भी मानते हैं इस
व्रत का महत्व करवा चौथ के व्रत जितना होता है। इस दिन सुहागिनें वट वृक्ष
की पूजा करती है। पूजा के दौरान बरगद के पेड़ के नीचे कथा सुनती हैं। वट
सावित्री पूजा और व्रत हिंदू चंद्र कैलेंडर के ज्येष्ठ महीने की अमावस्या
तिथि को मनाया जाता है।
वट सावित्री व्रत, जिसे सावित्री अमावस्या
या वट पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। छह जून को मनाया जाएगा। इस दिन
सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीघार्यु और सुख-समृद्धि के लिए व्रत रखती
हैं। इस त्योहार को लेकर ये मान्यता है कि इस व्रत को रखने से परिवार के
लोगों को सौभाग्य का आशीर्वाद मिलता है और वैवाहिक जीवन में खुशियां आती
है। माना जाता है कि इस व्रत का महत्व करवा चौथ के व्रत जितना होता है। इस
दिन व्रत रखकर सुहागिनें वट वृक्ष की पूजा लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अखंड
सौभाग्य देने के साथ ही हर तरह के कलह और संतापों का नाश करने वाली मानी
जाती है।
पंडित रामदेव पाण्डेय ने बताया कि वट सावित्री व्रत
ज्येष्ठ मास की अमावस्या पर रखा जाता है। पंचांग के अनुसार अमावस्या तिथि
की शुरूआत पांच जून की शाम को पांच बजकर 54 मिनट पर हो रही है। इसका समापन
छह जून शाम छह बजकर सात मिनट पर होगा। उदया तिथि को देखते हुए इस साल वट
सावित्री व्रत छह जून को रखा जाएगा। वहीं इस दिन पूजा के लिए शुभ मुहूर्त
प्रात: 11 बजकर 52 मिनट से दोपहर 12 बजकर 48 मिनट पर होगा। वट सावित्री
व्रत के दिन सुहागिन महिलाएं सुबह उठकर स्नान आदि करके सोलह शृंगार करती
हैं और व्रत का संकल्प लेती हैं।
मान्यता है कि वट सावित्री व्रत
के दिन विधिवत पूजन करने से महिलाओं अखंड सौभाग्य का वरदान प्राप्त होता
है। पूजा का सामान तैयार करके बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर पूजा करती हैं और
कथा सुनती हैं।
वट सावित्री व्रत की पूजा
उन्हाेंने बताया
कि विधि इस दिन महिलाएं प्रात: जल्दी उठकर स्नानादि करके लाल या पीले रंग
के वस्त्र धारण करें। फिर शृंगार करके तैयार हो जाएं। साथ ही सभी पूजन
सामग्री को एक स्थान पर एकत्रित कर लें और थाली सजा लें। किसी वट वृक्ष के
नीचे सावित्री और सत्यवान की प्रतिमा स्थापित करें। फिर बरगद के वृक्ष की
जड़ में जल अर्पित करें और पुष्प, अक्षत, फूल, भीगा चना, गुड़ व मिठाई चढ़ाएं।
वट के वृक्ष पर सूत लपेटते हुए सात बार परिक्रमा करें और अंत में प्रणाम
करके परिक्रमा पूर्ण करें। अब हाथ में चने लेकर वट सावित्री की कथा पढ़ें या
सुनें। इसके बाद पूजा संपन्न होने पर ब्राह्मणों को फल और वस्त्रों करें।