झारखंड गाथा: जब आदिवासी लड़ाई में गुरुजी के साथ आए 2 महारथी.

Sandeep Jain - 10/2/2025 9:21:02 AM -

झारखंड मुक्ति मोर्चा(JMM) के गठन में दिशोम गुरु के नाम से विख्यात शिबू सोरेन के योगदान को हर कोई जानता है। लेकिन, क्या आप उन दो महारथियों के योगदान को भी जानते हैं, जिन्होंने गुरुजी के साथ कंधे से कंधा मिलकर झारखंड राज्य के निर्माण और वहां के आदिवासियों-मजदूरों के लिए लंबी लड़ाई लड़ी। ये दो महारथी थे- विनोद बिहारी महतो और ए.के.राय। 'झारखंड गाथा' की तीसरी कड़ी में पढ़िए JMM के गठन की कहानी।

जानिए तीनों महारथियों की कहानी
झारखंड मुक्ति मोर्चा का गठन अचानक नहीं हो गया। इसके गठन की लंबी कहानी है। JMM के गठन से पहले विनोद बिहारी महतो, ए.के.राय और शिबू सोरेन धनबाद के आसपास के क्षेत्रों में अलग-अलग तरीकों से काम कर रहे थे। सबसे पहले एक-एक कर जानिए तीनों महारथियों की कहानी।

धनवाद के रहने वाले विनोद बिहारी महतो पेशे से वकील और दिल से समाज सुधारक थे। वो शिवाजी समाज नामक संगठन चलाते थे, जिसके जरिए कुडंमी समुदाय के विकास के लिए काम कर रहे थे। इधर शिबू सोरेन पिता की हत्या के बाद आदिवासी सुधार समिति के बैनर तले महाजनों व शोषकों के खिलाफ आदिवासियों को उनके हक दिलाने के लिए अभियान चला रहे थे। तीसरी तरफ ए.के.राय धनबाद के मजदूरों के लिए संघर्ष कर रहे थे। खदानों में माफिया राज हावी था। राय ने मजदूरों के शोषण के खिलाफ बिगुल फूंक रखा था।

शिबू सोरेन को मिला वकील और इंजीनियर का साथ
अब तक तीनों महारथी अलग-अलग काम कर रहे थे। एकजुटता की कमी और क्षेत्रीय स्तर पर मजदूरों, आदिवासियों के सुधार और उत्थान के प्रयास हो रहे थे। लेकिन, शिबू सोरेन को जब एक वकील और इंजीनियर का साथ मिला, तो उनकी लड़ाई को बड़ा प्लेटफॉर्म मिल गया। अब इस लड़ाई में गैर आदिवासी भी शामिल हो गए। पहली बार इनकी लड़ाई में अलग झारखंड राज्य बनाने का आंदोलन भी शामिल हुआ।

दो दलों का विलय करके बनाया नया संगठन
4 फरवरी 1972 को विनोद बाबू के धनबाद स्थित आवास पर बैठक हुई। यहां तीनों महारथी समेत कई दिग्गज शामिल हुए। इसमें प्रेम प्रकाश हेंब्रम, कतरास के पूर्व राजा पूर्णेंदु नारायण सिंह, शिवा महतो, जादू महतो, शक्तिनाथ महतो समेत कई लोग शामिल थे। इस बैठक में सोनोत संथाल समाज और शिवाजी समाज का विलय कर दिया गया।

नए दल का गठन किया गया, जिसके तहत आदिवासी, मजदूर समेत सभी वंचितों-शोषितों की आवाज को नई पहचान मिली। इस दल का नाम रखा गया, झारखंड मुक्ति मोर्चा। सबकी सहमति से इस संगठन का अध्यक्ष विनोद बिहारी महतो को बनाया गया। संगठन का महासचिव शिबू सोरेन को, उपाध्यक्ष पूर्णेंदु नारायण सिंह को बनाया गया।